बस्तर के चावल से कैंसर ठीक होने का दावा
रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विवि की जेनेटिक एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग ने बस्तर की विलुप्त होती चावल की एक किस्म पर रिसर्च कर ये पाया है कि इस चावल के सेवन से कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म किया जा सकता है।
बस्तर (छत्तीसगढ) के चावल से कैंसर ठीक हो सकता है। वह भी बिना ऑपरेशन और रेडिएशन दिए। रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विवि की जेनेटिक एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग ने बस्तर की विलुप्त होती चावल की एक किस्म पर रिसर्च कर ये पाया है कि इस चावल के सेवन से कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म किया जा सकता है। इस चावल को संजीवनी नाम दिया गया है।
संजीवनी चावल को पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण से पेटेंट मिल चुका है। कृषि विवि अब इस चावल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों दुनिया के सामने लांच करने की तैयारी में है।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। इस प्रदेश में 23250 धान की किस्म है। यहां की संस्कृति में धान का अपना महत्व है। तीज-त्यौहार में धान की पूजा से लेकर घर के साज-सज्जा के काम आता है। इंदिरा गांधी विवि के प्रोफेसर दीपक शर्मा, रिसर्च स्कॉलर सलाखा जॉन ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के रेडिएशन बायोलॉजी एंड हैल्थ साइंस विभाग के साथ मिलकर साल 2016 से धान की एक किस्म की मेडिसिनल प्रॉपर्टी पर शोध शुरू किया।
संजीवनी चावल का भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में चूहों पर परीक्षण किया गया, जिसमें चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले। सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने भी कैंसर से लड़ने के गुण संजीवनी चावल में पाए हैं। डॉ दीपक शर्मा ने बताया कि संजीवनी चावल का मेडिसिनल ह्यूमन ट्रायल जनवरी से टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल में शुरू करने की तैयारी है। संजीवनी चावल में 213 तरह के बायोकैमिकल पाए गए हैं, जिसमें 7 तरह के केमिकल कैंसर रोधी माने जाते हैं।
ढॉ. शर्मा के अनुसार दुनिया की यह पहली चावल की किस्म है, जिसका चिकित्सकीय उपयोग होगा। दो से तीन साल में मेडिसिनल उपयोग होना शुरू हो सकता है। डॉ दीपक शर्मा बताते है छत्तीसगढ़ में सबसे पहले डॉ आर एच रिछारिया ने 1974 में चावल की किस्म को पंजीबद्ध करने का प्रयास किया। उन्होंने ने करीब 18000 किस्मों की पहचान बताई। उन्होंने पचास साल पहले कहा था कि भविष्य में राइस थैरेपी होगी और आज वो दिन आ गया है।