भगत सिंह की पिस्तौल

The Border Security Force (BSF) put on display the pistol used by the freedom fighter Bhagat Singh to kill British officer John. Bhagat Singh Pistol

भगत सिंह की पिस्तौल
भगत सिंह की पिस्तौल

शहीदे आजम भगत सिंह की बहादुरी, देश दर्शन पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं, लेकिन यह किसी ने सोचा भी नहीं था कि महान क्रांतिकारी की पिस्तौल को केंद्र में रखकर भी एक पुस्तक लिखी जा सकती है।

अधिकांश लोग जानते हैं कि भगत सिंह ने 20 साल की उम्र में अपनी पिस्तौल का घोडा सिर्फ एक बार दबाया था और फिर यह पिस्तौल अंग्रेज पुलिस के कब्जे में आ गई। भगतसिंह ने 17 दिसम्बर 1928 की शाम 4 बजे लाहौर में पुलिस अधिकारी सांडर्स पर पिस्तौल की पूरी की पूरी मेग्जीन खाली कर लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया था। मालूम हो, इस घटना से एक माह पूर्व लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन के विरोध में जुलूस निकला गया था। बर्बर लाठी चार्ज में लालाजी घायल हुये और कुछ समय बाद उन्होंने आखिरी श्वांस ली। लालाजी पर लाठियां बरसाने वाले पुलिस अधिकारी सांडर्स को मारने के लिए यू.एस. निर्मित पाइंट 32 कॉल्ट की इस अद्भुत पिस्तौल को क्रांतिकारियों ने जुटाया था।

सांडर्स की हत्या के बाद भगत सिंह दुर्गा भाभी के साथ लाहौर से बच निकले और बाकी जीवन इस पिस्तौल से किसी पर गोली नहीं चलाई, लेकिन 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने दिल्ली की केंद्रीय असेम्बली में दो बम गिराए, पर्चे फेंके तब उनके पास यही पिस्तौल थी।

भगत सिंह की गिफ्तारी के बाद पुलिस ने उनसे बरामद पिस्तौल की बारीक जाँच कराई और पाया कि 168896 नंबर की इसी पिस्तौल का प्रयोग सांडर्स की हत्या में किया गया था।

7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह के मुकदमे का फैसला हुआ। अंग्रेज जज ने इस केस में बरामद पिस्तौल के साथ 300 पुस्तकों आदि सामान को निआज अहमद नाम के सी. आई.डी. अफसर को सौंपा, ताकि वह इस सामान को 'पुलिस ट्रेनिंग एकेडेमी', फिल्लौर (वर्तमान में जालंधर जिला) ले जाकर वहां रखवा दे। इसके बाद न जाने कितने आंदोलन आजादी की खातिर हुए, भगत सिंह लोगों की जुबान पर चढ़ गए, इतिहास में अमर हो गए, देश को आजादी मिल गई, नेता सत्ता के मद में चूर होने लग गए, लेकिन भगत सिंह की इस पिस्तौल का क्या हुआ, किसी ने न नाम लिया और न किसी को सुध आई।

शहीद चंद्रशेखर आजाद की माउजर (पिस्तौल) को उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद में प्रदर्शित कर दिया। दर्शक इस माउजर के बगल में खड़े होकर आजाद को याद कर गौरवान्वित होते हैं, लेकिन शहीदे-आजम की पिस्तौल की याद किसी को नहीं आई।

हाँ, चंडीगढ़ के पत्रकार जुपिंदरजीत सिंह ने भगत सिंह की इस यूएस निर्मित पाइंट 32 कॉल्ट की अद्भुत पिस्तौल को 86 साल बाद सन 2016 में ढूँढ़ निकाला। तब से यह पिस्तौल पंजाब के हुसैनीवाला के बीएसएफ के म्यूजियम में प्रदर्शित की जा रही है। शहीद भगत सिंह के गाँव खटकर कलां में भी एक म्यूजियम है। सभी की इच्छा थी कि पिस्तौल को इस गाँव के म्यूजियम में रखा जाये, लेकिन किन्ही कारणों से ऐसा न हो सका।

पिस्तौल की खोज करने वाले जुनूनी पत्रकार जुपिंदरजीत सिंह ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ भगतसिंह पिस्तौल' में लिखा है कि शहीदे-आजम के मुकदमे के फैसले में जज ने पिस्तौल को फिल्लौर भेजने का आदेश सन् 1931 में दिया था। लेकिन पिस्तौल को इस स्थान पर पहुंचने में 13 साल लगे। पिस्तौल सन् 44 में फिल्लौर पहुंची। ये ऐतिहासिक पिस्तौल 13 साल तक किस अंग्रेज अधिकारी के ड्राइंग रूम की शोभा बनी, इस रहस्य का उद्घाटन कोई अन्य खोजी पत्रकार करेगा।

आजादी के बाद सन् 1968 में राष्ट्रपति के आदेश पर मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित बीएसएफ के 'स्कूल ऑफ वेपन्स एंड टैक्टिस' में विभिन्न स्थानों से हथियार भेजने के आदेश हुए। फिल्लौर की 'पुलिस प्रशिक्षण एकेडमी' ने तब 8 हथियारों को इंदौर भेजा था। पत्रकार जुपिंदरजीत सिंह धूल लगी फाइलों को तलाशते हुए 2016 में इंदौर पहुंचे और बड़े अफसरों की मदद से भगतसिंह की पिस्तौल को ढूँढ़ निकाला। पिस्तौल के ऊपर पेण्ट कर दिया गया था, अतः पेण्ट खुरच कर पिस्तौल के नंबरों की मिलान की गई और फिर भगतसिंह की गुम हुई पिस्तौल का रहस्य सुलझ गया।

बाद में हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, इस प्रार्थना के साथ कि भगत सिंह की पिस्तौल पर पंजाब का हक है। हाईकोर्ट ने त्वरित फैसला दिया और आज यह पिस्तौल हुसैनीवाला के बीएसएफ के म्यूजियम में सम्मान के साथ प्रदर्शित है। पत्रकार जुपिंदरजीत सिंह की पुस्तक में पिस्तौल के गायब होने और फिर मिलने की रोमांचक दास्ताँ ही नहीं, बल्कि भगत सिंह के जीवन से जुड़ी अनेक घटनाओं का विवरण भी है। 167 पेज और 250 रुपये मूल्य की इस पुस्तक में भगत सिंह के जीवन के कुछ अछूते पहलू भी उजागर किये गए हैं। इस पुस्तक में अनेक भ्रान्तियों का निवारण साक्ष्यों के साथ किया गया है।

पत्रकार जुपिंदरजीत सिंह की पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ भगतसिंह पिस्तौल' अखबारों के खोजी पत्रकारों के लिए यह संदेश है कि बालू के टीले में खोई किसी सूई को कैसे तलाशा जाता है। सच मायने में जुपिंदरजीत सिंह ने सरकारी कागजों और असलहों में खोई पड़ी शहीदे आजम की पिस्तौल को बड़े लगन से तलाशा और किताब भी शिद्दत से लिखी है।

एक सवाल का जबाब मिलना बाकी है - इतनी कीमती पिस्तौल भगत सिंह को किसने दी थी?

- अशोक बंसल