महाकुंभ को इवेंट बना दियाः भगदड़ से साधु-संतों में आक्रोश

महकुंभ के मुख्य स्नान पर्व मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ की दुखद घटना के लिए केन्द्र और यूपी की सरकारों को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है, जिन्होंने इस महाकुंभ को एक इवेंट बनाकर रख दिया। भगदड़ को लेकर आम जनता के साथ ही संतों में भी भारी आक्रोश है।

महाकुंभ को इवेंट बना दियाः भगदड़ से साधु-संतों में आक्रोश

प्रयागराज में आज महकुंभ के मुख्य स्नान पर्व मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ की दुखद घटना के लिए केन्द्र और यूपी की सरकारों को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है, जिन्होंने इस महाकुंभ को एक इवेंट बनाकर रख दिया। भरपूर प्रचार से लोगों की आस्था को इस कदर जागृत कर दिया गया कि दुनियाभर से श्रद्धालु इस धार्मिक आयोजन में उमड़ पड़े। किंतु शासन-प्रशासन ने अपार भीड़ को नियंत्रित करने के पुख्ता इंतजाम नहीं किए। मेले की शुरूआत से ही केवल वीआईपी कल्चर का बोलबाला दिखाई दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे विश्व में निमंत्रण दिया कि 144 साल के बाद कुंभ आ रहा है। अतः यह महाकुंभ होगा सवाल उठता है कि क्या कुंभ का इतिहास क्या केवल 144 वर्ष का है? जबकि प्रत्येक 12 वर्ष में लगने वाला कुंभ अपने आप में 144 वर्ष बाद आता है।

कुंभ को इवेंट या कहें कि व्यावसायिक मेला बना देने वाले शासन-प्रशासन को इसकी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता से कोई सरोकार ही नहीं था। कुंभ में देवता आते हैं। साधु संत और कल्पवासी साधना करते हैं। अफसोस कि शासन और प्रशासन दोनों के द्वारा देवताओं का मान सम्मान नहीं किया गया, उनको आदर नहीं दिया गया।

सरकार खुद कहती रही कि 40 से 45 करोड़ लोग आएंगे। सरकार का जो अनुमान था, लोग उसी अनुमान के अंनुरूप आए हैं। फिर शासन और प्रशासन ने अपने अनुमान के अनुसार व्यवस्था क्यों नहीं की, यह प्रश्न उठता है। समूचे मेले में चाहे मेला अधिकारी हो, अपर मेला अधिकारी हो या एसएसपी मेला, डीआईजी मेला हो- किसी ने भी केवल चार-पांच राजनीतिक और आर्थिक प्रभावशाली संतों के अलावा किसी को भी महत्व नहीं दिया।

महाकुंभ मेले में आज की भगदड़ को लेकर आम जनता के साथ ही संतों में भी भारी आक्रोश है। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि ने वीआईपी कल्चर के साथ ही महाकुंभ को इवेंट बना दिए जाने पर निशाना साधा है। निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद गिरि ने भी मेले की सुरक्षा को सेना के हवाले नहीं किए जाने पर सवाल उठाए।
महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने कहा- कुंभ मेला प्रयागराज मौनी अमावस्या के स्नान के वक्त मची भगदड़ एवं अनेक लोगों की की मृत्यु बहुत दुखद पीड़ा दायक है। कुंभ मेला प्रशासन की हठधर्मिता तथा नासमझी के चलते यह घटना घटी। हमने अनेक कुम्भ किए हैं और देखे हैं। किंतु पहली बार किसी कुंभ में इतनी अव्यवस्था देखी है। अब कुंभ समाप्ति की ओर है, किंतु कुंभ में किए जाने वाले कार्य अभी तक लंबित पड़े हैं।

स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने वीडियो बयान जारी करते हुए कहा कि परंपरागत साधु संतों और संस्थाओं को मिलने वाली सुविधाएं टैन्ट, शौचालय, नल के लिए अभी तक साधु संतों को परेशान होना पड़ रहा है। पूर्व के मेलों जहां मेला प्रशासन के अधिकारी अपने-अपने सेक्टर और शिवरों में घूम-घूम कर खुद संतों को मिलने वाली सुविधाओं का ध्यान रखते थे, इस बार साधु संत अधिकारियों को खोज रहे हैं औऱ प्रशासनिक अधिकारी केवल वीआईपी जनों की आवभगत और उनके सुख सुविधा में लगे हुए हैं। इस कुंभ मेले में ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। जगह-जगह पुलिस केवल रास्ता और पुलों को बंद करने में लगी है क्योंकि रास्ते और पुल केवल वीआईपी लोगों की सुविधा के लिए है मेला प्रशासन के पास अमृत स्थान कराने की न कोई योजना थी, न तैयारी थी। और न ही उनकी आंतरिक भावना थी।

उन्होंने आगे कहा, मेले को भव्य और दिव्या कहा गया। वीआईपी और व्यावसायिक बनाकर भव्य बनाने का प्रयास तो हुआ किंतु मेले की आत्मा आध्यात्मिक और धार्मिकता जो कि दिव्यता थी, उसको ही दरकिनार कर दिया गया। साधु संत तथा कल्पवासियों का आदर और उनकी सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया, जिसके चलते मकर संक्रांति का स्नान भी दुर्व्यवस्थाओं से भरा रहा और आज इस मेले का मुख्य स्नान मौनी अमावस्या को देवताओं ने नाराजगी को प्रकट करते हुए स्वीकार नहीं किया है।

स्वामी यतीन्द्रानंद ने कहा,  कुंभ मेले का दुखद पहलू यह है की साधु संत अपने परंपरागत स्नान को नहीं कर सके तथा अखाड़े के देवता भी स्नान से वंचित रहे। शायद मेला प्रशासन के व्यवहार से देवता संतुष्ट नहीं थे, इसलिए देवताओं ने स्नान नहीं किया। अब देखना है मेले की दुर्व्यवस्था आज की घटना की नैतिक जिम्मेदारी कौन लेता है। उत्तर प्रदेश सरकार कुंभ में पधारे साधु संत तपस्वी और कल्पवासियों तथा श्रद्धालु भक्तजनों की भावनाओं और पीड़ा को कितना समझ पाती है और ऐसे संवेदनहीन मेला प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर क्या कार्रवाई करती है।

सेना की मदद क्यों नहीं ली

इसी तरह भगदड़ को लेकर निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद गिरि ने भी पुलिस-प्रशासन पर सवाल उठाए। उन्होंने सवाल किया कि जब सरकार को पता था कि कुंभ में इतने करोड़ लोग आएंगे, तो इस मेले का आयोजन सेना के माध्यम से क्यों नहीं कराया गया? व्यवस्थाएं सेना के हवाले क्यों नहीं की गईँ? पिछले स्नान के बाद हम सभी अखाड़ों ने प्रशासन को सचेत किया था। प्रशासन को पता था कि 50 करोड़ लोग आने वाले हैं तो सेना के हवाले से कुंभ का आयोजन क्यों नहीं किया गया।

उन्होंने बताया, मैं उत्तर प्रदेश के डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी को व्यक्तिगत रूप से कहता रहा कि आप लोग सेना बुलाएं और कुंभ को उसके हवाले कीजिए। इतनी भीड़ आने के बाद पुलिस-प्रशासन के बस की बात नहीं है और उसी का ही परिणाम है कि किसी का बाप चला गया तो किसी का पुत्र चला गया। बहुत दुखद और व्यथित करने वाला समाचार है।