कहां आके ठहरा...
Delve into 'Poem on Relationship' on Pressvani, a profound exploration of the complexities and beauty of relationships. This piece captures the essence of human connections through exquisite verse, offering readers a reflective and emotive journey through poetry.
कहाँ पे आ के ये काल ठहरा
मिलन हमारा मुहाल ठहरा
तुम्हीं हो मेरी हर इक गजल में
तुम्हीं पर आ के ख्याल ठहरा
न बनते जग में मिसाल कैसे
हुनर तुम्हारा कमाल ठहरा
पलक झपकते कहाँ ये गुजरा
कई महीने ये साल ठहरा
बनी थी कैसे ये दुनिया आख़िर
यहीं पे आ के सवाल ठहरा
कटा के सरहद पे सर जो आया
किसी का वो भी है लाल ठहरा
तेरी जफ़ाओं ने मार डाला
ये खून लेकिन हलाल ठहरा
टिका न कोई जलाल हर दम
न ही किसी का जमाल ठहरा
नहीं है चेहरे प क्यों तबस्सुम
ये किसका तुझमें मलाल ठहरा।