संघ कार्यकर्ताओं पर हमलाः आरोपी को नहीं मिली ‘सुप्रीम’ राहत
सुप्रीम कोर्ट के बुलडोजर कार्रवाई पर कड़े रुख के मद्देनजर जयपुर में भी ऐसी ही कार्रवाई का पीड़ित मानकर संघ के लोगों पर हमला करने वाले ने वहां याचिका लगा दी, लेकिन शीर्ष कोर्ट ने इसे बिना ठोस सबूत वाली बताकर खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के बुलडोजर कार्रवाई पर कड़े रुख के मद्देनजर जयपुर में संघ के लोगों पर हमला करने वाले ने खुद का घर तोड़े जाने पर, राहत की उम्मीद में, वहां याचिका लगा दी, लेकिन शीर्ष कोर्ट ने इसे बिना ठोस सबूत वाली बताकर खारिज कर दिया। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हुई बुलडोजर कार्रवाई के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों की खिंचाई करते हुए इसपर रोक लगाई थी। जयपुर के आरोपी की ओर से नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि कोर्ट के निर्देश के बावजूद उनकी की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाया गया, जिससे अदालत की अवमानना हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि याचिका बिना ठोस सबूतों के दायर की गई है। मीडिया रिपोर्टों पर आधारित याचिका को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। कोर्ट में तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली यह याचिका आज पेश की गई थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान राजस्थान की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने दलीलें रखीं।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सवाल उठाया कि याचिकाकर्ता संगठन विध्वंस से व्यक्तिगत रूप से कैसे प्रभावित हुआ? कोर्ट ने माना कि याचिका मुख्य रूप से समाचार पत्रों की रिपोर्टों पर आधारित है और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन का कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया है।
याचिका में उल्लेखित घटना गत 17 अक्टूबर को जयपुर के करणी विहार मंदिर में चाकूबाजी की थी। उस दिन शरद पूर्णिमा कार्यक्रम के दौरान नसीब चौधरी और उसके बेटे ने मंदिर में भक्तों पर हमला कर दिया, जिनमें 10 लोग घायल हो गए थे। ये सभी आरएसएस कार्यकर्ता थे। हमले के दो दिन बाद 20 अक्तूबर को आरोपी नसीब के घर को बुलडोजर से गिरा दिया गया था।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 1 अक्टूबर को बुलडोजर कार्रवाई के बारे में आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना देशभर में कोई विध्वंस नहीं होना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि यह प्रतिबंध ऐसे अवैध संरचनाओं पर लागू नहीं होगा, जो सार्वजनिक स्थानों जैसे सड़कें, गलियां, फुटपाथ, रेलवे लाइन या जल निकायों के निकट स्थित हैं। साथ ही अदालत के आदेश के बाद की गई कार्रवाइयां इस निर्देश से बाहर थे।