राजस्थानी ऊंटनी के दूध में भी मिठास लाने की कवायद

राजस्थान की ऊंटनियों के दूध में फैट की मात्रा अधिक करने के लिए ही गुजरात के 17 पौधों के नमूनों को बीकानेर लाया गया है, जहां इन पर शोध करके पौधे तैयार किए जाएंगे। यह सारी कवायद गुजरात की तरह राजस्थानी ऊंटनियों के दूध को भी गुणकारी और मीठा बनाने के लिए हो रही है।  

राजस्थानी ऊंटनी के दूध में भी मिठास लाने की कवायद

गुजराती ऊंटनी के दूध में प्रोटीन औऱ मिठास को लेकर शोध किया जाएगा। बीकानेर के राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र इस पर अनुसंधान करेगा। केन्द्र के वैज्ञानिकों ने गुजराती ऊंटनी के दूध के आठ नमूने तथा वहां के खास पौधों को एकत्र किया है। गुजरात गए केन्द्र के वैज्ञानिकों ने भुज में ऊंटनी के दूध पर विशेष ध्यान दिया। केन्द्र के वैज्ञानिकों ने जब वहां की ऊंटनी के दूध का स्वाद चखा, तो उन्हें थोड़ा मीठा लगा। वहीं, राजस्थानी ऊंटनी के दूध में तीखापन होता है।

इस पर वैज्ञानिकों ने खान-पान को लेकर वहां के वैज्ञानिकों से चर्चा की। चर्चा में यह सामने आया कि गुजरात में ऊंट के लिए बारह महीने जाल का चारा मिलता है। क्यांकि वहां समुद्र का पानी उपलब्ध रहता है। मगर राजस्थान में बरसात पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर बरसात नहीं होती है तो जाल नामक पौधा तैयार नहीं हो पाता है। जाल की पत्तियां अधिक खाने से गुजराती ऊंटनी के दूध में प्रोटीन तथा फैट अधिक होता है।

गुजरात के चराई क्षेत्र में मुख्यत: खारा जाल और लाणा नामक पौधे देखे गए थे। इन पौधों के सेवन से गुजरात की ऊंटनी का दूध मीठा महसूस हुआ। इस दूध में फैट और लैक्टोज़ की मात्रा भी अधिक लगी। इस वजह से दूध में तीखापन कम था। इधर, राजस्थान की ऊंटनियों के दूध में फैट एवं लैक्टोज की मात्रा कम होने के कारण मिठास कम होत है। राजस्थान की ऊंटनियों के दूध में फैट की मात्रा अधिक करने के लिए ही गुजरात के 17 पौधों के नमूनों को बीकानेर लाया गया है, जहां इन पर शोध करके पौधे तैयार किए जाएंगे। यह सारी कवायद गुजरात की तरह राजस्थानी ऊंटनियों के दूध को भी गुणकारी और मीठा बनाने के लिए हो रही है।  

राजस्थानी ऊंटनियों के दूध में तीखापन होने से ही लोगों में इसके लिए रुझान कम है। दूसरी ओर गुजरात में लोग ऊंटनी के दूध का खूब सेवन करते हैं। गुजरात की अमूल संस्था उष्ट्र दुग्ध संग्रहण बूथसंचालित करती है, जहां प्रतिदिन लगभग 1500 लीटर दूध संग्रहित होता है।
अमूल के अलग-अलग बूथों पर 4000-5000 लीटर दूध प्रतिदिन एकत्रित किया जाता है। अब राजस्थान में ऊंटनी के दूध की उपयोगिता को बढ़ावा देने के लिए बीकानेर केन्द्र के वैज्ञानिक एनआरसीसी, अमूल और कामधेनु विश्वविद्यालय के बीच त्रिपक्षीय एमओयू करने जा रहे हैं