ब्रेनस्ट्रोक मरीजों का संगीत से होगा इलाज
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज दिल्ली में अब ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों का इलाज दवाओं से नहीं, संगीत से होगा। ब्रेन स्ट्रोक के बाद अपने बोलने और समझने की क्षमता खो चुके मरीज भारत की लोकप्रिय धुनें गुनगुना कर बोलना सीखेंगे। भारत में पहली बार अफेजिया से जूझ रहे मरीजों के लिए म्यूजिक थेरेपी का भारतीय मॉड्यूल तैयार किया जा रहा है और इसमें एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टरों की मदद आईआईटी दिल्ली कर रहा है।
एम्स दिल्ली में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉ. दीप्ति विभा ने बताया कि स्ट्रोक में मरीज के ब्रेन का बायां हिस्सा काम करना बंद कर देता है। इस हिस्से की वजह से ही सामान्य व्यक्ति किसी बात को समझता है, बोलता है और अपनी फीलिंग्स को अभिव्यक्त करता है। अफीजिया के मरीज एक छोटा शब्द या वाक्य भी नहीं बोल पाते हैं। ऐसे में इन्हें फिर से बोलना सिखाने के लिए स्पीच थेरेपी आदि दी जाती हैं, लेकिन विदेशों में इसके लिए म्यूजिक थेरेपी बहुत पॉपुलर है।
डॉ. दीप्ति विभा कहती हैं कि अफीजिया में ब्रेन का बायां हिस्सा तो प्रभावित होता है, लेकिन दांया हिस्सा एकदम स्वस्थ रहता है। ब्रेन के दांये हिस्से की वजह से व्यक्ति संगीत को समझता है, उसे गुनगुनाता है और याद रखता है। अफीजिया का जो मरीज एक शब्द जैसे ‘पानी’ भी बोलकर नहीं मांग पाता, वह पूरा का पूरा गीत गुनगुना लेता है। इसलिए म्यूजिक थेरेपी में मरीज के दांये हिस्से को एक्टिव करके उसे संगीत की शैली में बोलना और एक्सप्रेस करना सिखाया जाता है। इसके लिए बाकायदा एक तय मॉड्यूल होता है, रिसर्च होती है और फिर इसे मरीजों पर एप्लाई किया जाता है।
सबसे पहले इस थेरेपी में छोटे-छोटे शब्दों को लय में, संगीत की किसी धुन में बोला जाता है। इसके बाद बड़े बड़े वाक्यों को म्यूजिक के साथ बोला जाता है और मरीजों को भी ऐसा करने के लिए कहा जाता है। क्योंकि उनके ब्रेन का दांया हिस्सा काम कर रहा है, तो वे इसे आसानी से समझ तो सकते ही हैं, उसे लय में एक्सप्रेस भी कर पाते हैं। इसके लिए कुछ कॉमन धुनें तय की जाती हैं, जिनसे मरीज वाकिफ होते हैं। उदाहरण के लिए रघुपति राघव राजा राम या ऐ मेरे वतन के लोगो…. ये धुनें ज्यादातर भारतीय जानते हैं।
बताते चलें कि अभी तक म्यूजिक थेरेपी विदेशों में उनकी भाषाओं के म्यूजिक या धुनों के माध्यम से दी जाती है। भारत में भी ये थेरेपी मरीजों को दी गई है, लेकिन इसमें विदेशी म्यूजिक होता है, जिसे भारतीय मरीज न तो अच्छे से समझ पाते हैं और न ही खुद को उससे जोड़ पाते हैं, इसलिए यह बहुत सफल नहीं हुई।
प्रोफेसर बताती हैं कि एम्स और आईआईटी दिल्ली मिलकर आईसीएमआर फंडेड न केवल अफीजिया के मरीजों पर एक स्टडी करने जा रहे हैं, बल्कि सबसे पहले भारतीय संगीत और धुनों का मॉड्यूल तैयार करने जा रहे हैं। आईआईटी दिल्ली के एक डॉक्टर कर्नाटक संगीत में महारथी भी हैं और वे संगीत की बारीकियों को जानते हैं, ऐसे में उनके साथ मिलकर कुछ सामान्य धुनों को तलाशा जा रहा है। इन्हें मॉड्यूल में रखा जाएगा और मरीजों पर रिसर्च करके इसका अध्ययन किया जाएगा। डॉ. दीप्ति कहती हैं कि एम्स में करीब 70 फीसदी मरीज उत्तर भारतीय गांवों से आते हैं। ऐसे में मॉड्यूल तैयार करते समय यहां के प्रचलित संगीत और धुनों को ध्यान में रखा जा रहा है। साथ ही जैसे-जैसे मरीज स्टडी के लिए आएंगे, उनके परिजनों से भी उनकी पसंद को लेकर बातचीत की जाएगी।
मरीज लाने का अपील
एम्स में की जाने वाली इस स्टडी के लिए न्यूरोलॉजी विभाग ने ब्रेन स्ट्रोक के बाद बोलने की क्षमता खो चुके मरीजों के परिजनों से अपील की है कि वे इस स्टडी में शामिल करने के लिए मरीज को एम्स जरूर लेकर आएं। मरीज का निशुल्क इलाज होगा। (साभार—न्यूज18)