रोमांच नदारद, नीरसता ने गिराई वोटिंग!!

कम वोटिंग की वजह इस चुनाव में रोचकता की कमी को माना जा रहा है। कांटे के मुकाबले का रोमांच नदारद होने से जनता के साथ-साथ भाजपा और कांग्रेस के लोगों में भी नीरसता पैदा कर दी।

रोमांच नदारद, नीरसता ने गिराई वोटिंग!!

राजस्थान में पहले चरण की मतदान कई संकेत दे रहा है प्रदेश में पहले चरण की 12 सीटों पर करीब 57.87 फीसदी वोटिंग हुई, जो 2019 के मुकाबले 63.72 फीसदी वोटिंग से करीब 6 फीसदी कम है। मौटे तौर पर कम वोटिंग की वजह इस चुनाव में रोचकता की कमी को माना जा रहा है। आमजन यह मानकर चल रहा है कि मोदी को तो तीसरी बार आना ही है। कांग्रेस मजबूत विकल्प के रूप में नहीं दिखाई दे रही है। कांटे के मुकाबले का रोमांच नदारद होने से जनता के साथ-साथ भाजपा और कांग्रेस के लोगों में भी नीरसता पैदा कर दी।

भाजपा की सेफ मानी जाने वाली जयपुर शहर में सांगानेर, मालवीय नगर जैसे इलाकों में मतदान का कम होना चिंता का विषय है फर्स्ट टाइम वोटर भी इस बार घरों से वोट करने नहीं निकल, जो बताता है कि युवा इस बार उदासीन है पहले चरण में राष्ट्रीय मुद्दे भी गौण रहे अधिकांश सीटों पर व्यक्तियों और जातियों का चुनाव हुआ चूरू लोकसभा क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा कर माहौल को बदलने की कोशिश की, लेकिन हां चुनावी मुद्दा केवल राहुल कस्वां बनाम राजेंद्र राठौड़ की सियासी जंग ही बना रहा इसी तरीके से नागौर में, जिसे 'जाटलैंड' कहा जाता है, चुनाव कांग्रेस-भाजपा के बीच नहीं, बल्कि 2 कद्दावर जाट नेताओं- ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल की व्यक्तिगत सियासी जंग में तब्दील हो गया इसबीच, गंगानगर जैसी सीट, जिसकी बहुत अधिक चर्चा नहीं हुई, वहां वोटिंग प्रतिशत में इजाफा भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है वहीं धौलपुर करौली का मतदाता खामोश क्यों है? इस बात की गुत्थी को भी समझने की कवायद की जा रही है

पीएम मोदी, अमित शाह और राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा ने कोशिश की कि चुनाव प्रचार अभियान को गति दी जाए. लेकिन इसके बावजूद इसबार का चुनाव प्रचार पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले फीका दिखाई दिया। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चुनाव प्रचार से दूरी भी भाजपा के लिए एक बड़ा फैक्टर दिखाई दी है कांग्रेस तो इस मामले में काफी पीछे रही राष्ट्रीय नेताओं ने राजस्थान से दूरी बनाए रखी स्टार प्रचारक नहीं आए राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी के केवल एक-एक दौरे हुए अधिकांश सीटों पर ही पायलट गहलोत और पीसीसी चीफ डोटासरा कांग्रेस की तरफ से मोर्चा संभाले हुए दिखाई दिए 

हालांकि पहले चरण में कम वोटिंग से ऊपरी तौर पर दोनों ही दल अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. लेकिन सच तो ये है कि दोनों ही पार्टियों के नेता कम वोटिंग प्रतिशत से बेहद चिंतित हैं छह फीसदी के आसपास घटे वोटिंग प्रतिशत में किसका वोटर अधिक है? किसे कितना नुकसान हुआ है? इस बात का पता लगाने की कोशिश की जा रही है मतलब, पहला चरण देख कर लग रहा है कि ये चुनाव शायद ऐसा मैच हो गया, जिसका परिणाम पहले से पता हो तो फिर आखिरी ओवर का रोमांच खत्म हो जाता है ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार चुनाव परिणाम देश को कोई चौंकाने वाला जनमत देने जा रहा है?