चूहे, छंछूदर का काटना भी खतरनाक

कुत्‍ते-बिल्‍ली-बंदर ही नहीं, चूहे और छंछूदर का काटना भी खतरनाक होता है। इनसे भी रेबीज या अन्‍य खतरनाक रोग फैल सकता है, जिससे पीड़ित की मौत तक हो सकती है।

चूहे, छंछूदर का काटना भी खतरनाक

कुत्‍ते-बिल्‍ली-बंदर ही नहीं, चूहे और छंछूदर का काटना भी खतरनाक होता है इनसे भी रेबीज या अन्‍य खतरनाक रोग फैल सकता है, जिससे पीड़ित की मौत तक हो सकती है

भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय के अधीन नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की रेबीज की रोकथाम और बचाव के लिए तैयार गाइडलाइंस के अनुसार कुत्‍ता-बिल्‍ली बंदर आदि जानवरों के काटने से रेबीज रोग हो सकता है इसलिए रेबीज की वैक्‍सीन लगवानी होती है, लेकिन घरों में भी कुछ ऐसे छोटे जानवर होते हैं, जो काट लें तो खतरा पैदा हो सकता है

गाइडलाइंस के अनुसार सामान्‍य तौर पर घर में घूमने वाले चूहों के काटने से रेबीज का ट्रांसमिशन नहीं होता है। इसलिए माना जाता है कि अगर चूहा दांत मार जाए तो रेबीज वैक्‍सीन की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन जिस जगह चूहे ने काटा है, उस घाव को तत्‍काल बहते पानी और साबुन से धोने की जरूरत होती है। साथ ही यह भी देखना चाहिए कि घाव कितना बड़ा है।

घाव को धोने के अलावा किसी फिजिशियन से भी जरूर सलाह लेनी चाहिए। अगर डॉक्‍टर घाव देखकर कहता है कि एंटी टिटनेस का इंजेक्‍शन लेना है तो वह तुरंत लगवाना चाहिए। कई बार मरीज जिसे चूहा समझ रहा है, वह छछुंदर, नेवला या मोल हो सकता है। इसलिए बचाव के लिए जरूरी है कि मरीज को रेबीज का वैक्‍सीनेशन कराने जाना चाहिए। इसके अलावा जंगल में नेवला, खरगोश, चूहा, छछुंदर या कोई भी रोडेंट काट ले तो पोस्‍ट एक्‍सपोजर प्रोफिलेक्सिस (रेबीज) के टीके लगवाना जरूरी है।

एनसीडीसी के अनुसार रेबीज की रोकथाम संभव है, लेकिन अगर रेबीज रोग एक बार हो जाए तो इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। यह 100 फीसदी फैटल है। इसके होने के बाद पीड़ित व्‍यक्ति की जान चली जाती है। एक और बात, जिस जानवर ने काटा है, वह रेबिड है या नहीं, इसका भी पता नहीं चल पाता है। इसलिए रेबीज वैक्‍सीनेशन जरूरी हो जाता है।