मौसम पूर्वानुमान की अनूठी परंपरा, इस साल कमजोर मानसून
बीकानेर के गंगाशहर उपनगर में मौसम की भविष्यवाणी करने की अनूठी परंपरा करीब डेढ़ सदी से चली आ रही है। इसके तहत होलिका दहन के दिन रविवार को एक साल पूर्व होलिका दहन के दिन जमीन में पांच फीट गहरी दबी पानी से भरी मटकी खोदने पर वह सूखी निकली। ऐसे में इस साल मानसून कमजोर रहने की घोषणा की गई।
मौसम विभाग के सटीक पूर्वानुमानों के बीच बीकानेर के गंगाशहर उपनगर में मौसम की भविष्यवाणी करने की अनूठी परंपरा करीब डेढ़ सदी से चली आ रही है। इसके तहत होलिका दहन के दिन रविवार को एक साल पूर्व होलिका दहन के दिन जमीन में पांच फीट गहरी दबी पानी से भरी मटकी खोदने पर वह सूखी निकली। ऐसे में इस साल मानसून कमजोर रहने की घोषणा की गई। वहीं मटकी के ऊपर जड़ों के मिलने से यह पूर्वानुमान लगाया गया है कि पशुओं के लिए चारे की कमी नहीं होगी।
गंगाशहर में चांदमलजी के बाग के पास स्थित खारिए कुंए के पास गंगाशहर की स्थापना के समय से हर साल होलिका दहन के दिन पानी से भरी मटकी जमीन में गाड़ने व अगले वर्ष दहन के दिन ही सुबह जमीन से मटकी निकाल कर उसमें पानी की स्थिति को देखते हुए जमाने (मौसम) की घोषणा करने की परंपरा है। रविवार सुबह करीब 9 बजे क्षेत्र के सर्वसमाज के लोगों ने जैसे ही गत वर्ष जमींदोज पानी की मटकी निकाली तो सर्वसम्मति से इस वर्ष जमाना कमजोर रहने की घोषणा की।
इसी दौरान आसपास के गांवों के लोगों और उनके रिश्तेदारों के भविष्यवाणी जानने के लिए फोन आने शुरू हो गए। इस परंपरा से पिछले छह दशक से जुड़े विनोद ओझा ने बताया कि देशनोक से करीब 140 साल पहले माहेश्वरी व ओझा समाज के साथ अन्य समाज के लोग यहां पर आए और गंगाशहर की स्थापना हुई। स्थापना के समय से ही होलिका दहन का कार्यक्रम लगातार यहां चल रहा है। उन्होंने बताया कि जमाना परंपरा की शुरुआत पंडित भोमाराम ओझा की ओर से करीब 140 साल पूर्व की गई, जो आज भी निरंतर जारी है।
गंगाशहर में सर्वसमाज के लोग पिछले साल जमीन में दबी पानी से भरी मटकी को निकालते हैं। उसके बाद गणपति, वरुण देवता, विष्णु भगवान की पूजा अर्चना के साथ नई मटकी का पूजन कर उसको उसी स्थान पर अगले होलिका दहन तक के लिए जमीन में पांच फीट गहराई में गाड़ दिया जाता है।