बीड़ी की कम खपत से घटी तेंदूपत्ते की मांग

कुछ वर्षों से बीड़ी की खपत कम होने लगी है। ऐसे में बीड़ी बनाने के काम आने वाले तेंदुपत्ता की मांग भी घटने लगी है। जंगल से तेंदुपत्ता तोडऩे के ठेकों की राशि में कमी आ रही है।

बीड़ी की कम खपत से घटी तेंदूपत्ते की मांग

कुछ वर्षों से बीड़ी की खपत कम होने लगी है। ऐसे में बीड़ी बनाने के काम आने वाले तेंदुपत्ता की मांग भी घटने लगी है। जंगल से तेंदुपत्ता तोडऩे के ठेकों की राशि में कमी आ रही है। इस वर्ष प्रतापगढ़ वन विभाग को आठ करोड़ रुपए के ठेके हुए है, जबकि गत वर्ष 9 करोड़ 41 लाख रुपए के ठेके हुए थे।

वन विभाग की ओर से जंगल में तेंदूपत्ता तोडऩे के हर वर्ष होने वाले ठेके से आय में लगातार कमी होती जा रही है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार सात वर्ष पहले यह आय 26 करोड़ रुपए थी। इसके बाद साढ़े 13 करोड़ रुपए हुई। उसके बाद मांग में कमी होने से आय कम हो गई है।

राजस्थान में तेंदूपत्ता उदयपुर संभाग में उदयपुर, प्रतापगढ़, चितौडगढ़़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर तथा कोटा संभाग में बारा, बूंदी, झालावाड़ में सर्वाधिक होता है। इन दोनों संभागों में होने वाला तेंदूपत्ता उत्तम गुणवत्ता का माना जाता है। इसके अलावा तेंदूपत्ता राजस्थान में सिरोही, भीलवाड़ा, अलवर में भी होता है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के जंगलों में भी तेंदूपत्ता होता है।

इस वर्ष जहां पूरे प्रदेश में 20 करोड़ 65 लाख रुपए के ठेके हुए है। इसमें उदयपुर संभाग में 14 करोड़ 95 लाख रुपए के ठेके हुए है। इसमें से प्रतापगढ़ वन मंडल को 8 करोड़ 14 लाख रुपए के ठेके हुए है। ऐसे में करीब 40 प्रतिशत तेंदुपत्ता का ठेका प्रतापगढ़़ वन मंडल से होता है, जबकि 60 प्रतिशत उत्पादन प्रदेश के अन्य जंगलों में होता है।

तेन्दूपत्ता संग्रहण के लिए बड़ी संख्या में श्रमिकों की जरूरत होती है। इससे हजारों की संख्या में स्थानीय श्रमिकों को रोजगार मिलता है। अब तेन्दूपत्ते की मांग में कमी का सीधा असर क्षेत्र के श्रमिकों पर पड़ेगा।